Sunday 15 November 2015

तेरा मेरा निर्मल प्रेम

तेरा मेरा निर्मल प्रेम,
जैसे दीया और बाती|
तेरी याद में सावरिया मैं,
लिखूं अब ये पाती |
रूप श्रृंगार मन न भावे,
रह-रह ह्दय शूल समावे|
कौन-कौन दुःख कहूं संघाती,
तेल बिन कहा जले ये बाती|
पपीहा तो पीउ-पीउ पुकारे,
मैं कहते शरमाती|
लाज-शरम सब त्याग,
काश! मैं जोगन बन जाती|
बारह मास बीत गयो,
लिखते - लिखते  पाती|
सुध-बुध अपनी भूल गई,
तेरे ही  गुन  गाती|

2 comments: