Saturday 5 December 2015

कौन कहता बेटा-बेटी में अंतर है

कौन कहता बेटा-बेटी में अंतर है ,
लेकिन भ्रूण हत्या हो रहा निरंतर है |

बेटी तो सुख का समुन्दर है ,
स्नेह,ममता, सहनशील शब्द जैसे सुन्दर है |

व्याकरण पढ़ो भाषा शुद्ध करो

व्याकरण पढ़ो भाषा शुद्ध करो ,

मौखिक लिखित से विचार व्यक्त करो |

मौखिक में अशुद्धता है कम बोलो ,

बोलने से पहले बार -बार तोलो |

नाप - तोल सही होने पर मुख खोलो ,

बोलते हो , अर्थ कुछ और निकलता है |

अर्थ से अनर्थ होकर राजनीति में फैलता है |

वर्ण के क्रमवद्ध से वर्णमाला बनता है ,

वर्णों के सार्थक समूह से शब्द बनता है |

शब्दों के सार्थक समूह से वाक्य बनता है ,

वाक्य से ही बनता है बिगड़ता है |

मिश्रित सयुंक्त सरल वाक्य को ,

पहचानो फिर बोलो अपना मुख खोलो |

कर्तृवाच्य भाववाच्य कर्मवाच्य समझोगे ,

तब देश में प्रेम भाईचारा और एकता पाओगे |

जब एक -एक की परिभाषा समझोगे ,

तभी अकर्मक सकर्मक क्रिया पहचानोगे |

Sunday 29 November 2015

हिन्दू-मुस्लिम, सिख-इसाई

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
कही पे प्रेम कही पे खाई |
कही पे लूट कही लड़ाई ,
कहा है हम सब भाई-भाई |
छल कपट अब खूब भरा है ,...
खोटा भी अब खूब खरा है|
चोर उच्चके सिर सेहरा है ,
ईमानदारी पर लगा पहरा है |
सहिष्णुता कोअसहिष्णुता कहते ,
भोली-भाली जनता को ठगते |
झूठ-मूठ की बात फैलाते ,
अपनी-अपनी झोली भरते |
ऐसा जीवन कहा अब पाओगे ,
अंत समय पछताओगे |
भारत माता की दुर्दशा पर ,
माफ़ी मांगते-मांगते मर जाओगे |
दिल की अदालत तुझे फटकारेगी,
तूझसे गवाह अब नहीं मागेगी|
गुनाह बड़ा फंदा छोटा कहकर,
मौत तुझसे दूर भागेगी |
हे नर ! संभल जा इस जीवन में ,
फिर जनम नहीं ले पाओगे |
यदि अच्छे करम करोगे ,
गाँधी जैसा जीवन पाओगे |
मृत्यु पर्यन्त जीवित रहोगे ,
उपदेशक और उपमा में |
अब ऐसा जीवन नहीं मिलेगा ,
सच में या कल्पना में |
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
कही पे प्रेम कही पे खाई |
कही पे लूट कही लड़ाई ,
कहा है हम सब भाई-भाई |
छल कपट अब खूब भरा है ,...
खोटा भी अब खूब खरा है|
चोर उच्चके सिर सेहरा है ,
ईमानदारी पर लगा पहरा है |
सहिष्णुता कोअसहिष्णुता कहते ,
भोली-भाली जनता को ठगते |
झूठ-मूठ की बात फैलाते ,
अपनी-अपनी झोली-झोली भरते |
ऐसा जीवन कहा अब पाओगे ,
अंत समय पछताओगे |
भारत माता की दुर्दशा पर ,
माफ़ी मांगते-मांगते मर जाओगे |
दिल की अदालत तुझे फटकारेगी,
तूझसे गवाह अब नहीं मागेगी|
गुनाह बड़ा फंदा छोटा कहकर,
मौत तुझसे दूर भागेगी |
हे नर ! संभल जा इस जीवन में ,
फिर जनम नहीं ले पाओगे |
यदि अच्छे करम करोगे ,
गाँधी जैसा जीवन पाओगे |
मृत्यु पर्यन्त जीवित रहोगे ,
उपदेशक और उपमा में |
अब ऐसा जीवन नहीं मिलेगा ,
सच में या कल्पना में |

Sunday 15 November 2015

तेरा मेरा निर्मल प्रेम

तेरा मेरा निर्मल प्रेम,
जैसे दीया और बाती|
तेरी याद में सावरिया मैं,
लिखूं अब ये पाती |
रूप श्रृंगार मन न भावे,
रह-रह ह्दय शूल समावे|
कौन-कौन दुःख कहूं संघाती,
तेल बिन कहा जले ये बाती|
पपीहा तो पीउ-पीउ पुकारे,
मैं कहते शरमाती|
लाज-शरम सब त्याग,
काश! मैं जोगन बन जाती|
बारह मास बीत गयो,
लिखते - लिखते  पाती|
सुध-बुध अपनी भूल गई,
तेरे ही  गुन  गाती|

Tuesday 10 November 2015

दीदी मेरी जल्दी आओ/दीपावली पर एक रचना

दीदी मेरी जल्दी आओ |
आओ मिलकर दीप जलाओ |
तम से मुझको डर लगता है,
इसको जल्दी दूर भगाओ |
दीदी मेरी जल्दी आओ |
कहा गई बच्चों की टोली,
दीदी मेरी जोर से बोली,
हम सब बन गए हमजोली,
दीदी मेरी कितनी भोली,
दीपावली आई है.
ढेरों खुशियों लाई है.
रंग - बिरंगी फुलझडियो की.
लड़ियाँ हमने सजाई है |


आप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें......

 
 

Wednesday 4 November 2015

आओ कुछ लिखने का प्रयास करें


आओ कुछ लिखने का प्रयास करें |
मन में कुछ नई आस करें |
कुछ तुम कहो कुछ मै कहूँ,
इस तरह बातो की शुरुआत करें,
देश, राजनीति, भ्रष्टाचार,
इसी पर चर्चा बार-बार करें,

आओ कुछ लिखने का प्रयास करें,
नेता भ्रष्ट, भ्रष्टाचारी,
क्यों हम एक दूसरे पर वार करें,
प्यार स्नेह उपमा को
परिभाषित करने का प्रयास करें,
आओ कुछ लिखने का प्रयास करें,
कलम की धार को तेज करें,
कि राजनीति में घसीटने का प्रयास करें,
मक्कारों, गददारों, भ्रष्टाचारियों की,
पोल खोलने का प्रयास करें,
आओ कुछ लिखने का प्रयास करें,
 भाई-भाई कहकर, बंधुत्व का प्यार भरें,
 हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,
जाति-वार न अनायास करे,
आओ कुछ लिखने का प्रयास करें |
 

Wednesday 21 October 2015

कविता/ ज़िंदगी को पास से देखा

ज़िंदगी को पास से देखा |
हँसते देखा,
रोते देखा,
खोते देखा,
सोते देखा,...

ज़िंदगी को पास से देखा |
मचलते देखा,
तड़पते देखा,
भागते देखा,
रूकते देखा,
ज़िंदगी को पास से देखा |

गुनगुनाते देखा,
थिरकते देखा,
भटकते देखा,
सरकते देखा,
ज़िंदगी को पास से देखा |

 

Thursday 3 September 2015

एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी

काल्पिनक सपनो में खोया पड़ा है ।
दुनिया से बेख़बर सोया पड़ा है ।
इसे क्या पता कितना खोया है,
बेवक्त भी सोया है,
उठेगा, कर्म को कोसेगा, ...
जिंदगी की रेस में भटकेगा,
कुछ खोएगा, कुछ पायेगा,
आदमी बार-बार किस्मत को कोसेगा ।

Saturday 30 May 2015

चंदा मामा (बाल कविता)

चंदा मामा आओ ना |
मेरा मन बहलाओ ना |

मम्मी मेरी थकी पड़ी है,
मुझसे पहले सोई पड़ी है,
रहे नहीं अब राजा रानी,
अब न दिखे परियों की रानी,
अब ना मिलते नाना-नानी,
कौन सुनाए हमें कहानी,
लोरी एक सुनाओ ना....
मेरा मन बहलाओ न....

दादा-दादी दूर पड़े हैं,
घुटनों से मजबूर पड़े हैं,
कोई मन बहलाए ना,
रूठे तो मनाए ना,
चाँद का गीत सुनाए ना,
चंदा हमें दिखाए ना,
तुम खुद ही आ जाओ ना....
मेरा मन बहलाओ ना......